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अकबर इलाहाबादी के वो 10 शेर जो आपके दिल को चीर के पार निकल जाएंगे!
सैयद अकबर हुसैन रिज़वी जिनको हम अकबर 'इलाहाबादी' के नाम से जानते है, जिनको ब्रिटिश सरकार ने "खान बहादुर" की पदवी से नवाज़ा था, 16 नवंबर 1846 में इलाहाबाद में जन्मे और 9 सितम्बर 1921 को इलाहाबाद में आखिरी सांसें ली और मरते दम तक इलाहाबादी रहे. इलाहाबाद डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में सेशंस जज हुआ करते थे और अपनी शायरियों से ग़दर मचाया करते थे.

एक दफे अकबर साहब ने एक टोकरी आम की डॉक्टर अलम्मा इक़बाल को लाहौर भेजी और इक़बाल साहब ने आम प्राप्त करने पर एक पत्र भेजा अकबर साहब को, पत्र में लिखा था की सारे आम सही सलामत पहुंच गए है और ये पढ़ के अकबर साहब को बड़ी हैरत हुई और उन्होंने पूरी घटना का उल्लेख एक शेर के द्वारा किया :
"असर ये तेरे अन्फ़ास-ए-मसीहाई का है 'अकबर'
इलाहाबाद से लंगड़ा चला लाहौर तक पहुँचा"
आइये पढ़ते है अकबर इलाहाबादी के वो 10 शेर जो आपके दिल को चीर के पार निकल जाएंगे-
1- ग़ज़ब है वो ज़िद्दी बड़े हो गए,
मैं लेटा तो उठ के खड़े हो गए.
2- जिस तरफ़ उठ गई हैं आहें हैं,
चश्म-ए-बद-दूर क्या निगाहें हैं.
3- दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ,
बाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ.
4- पूछा 'अकबर' है आदमी कैसा,
हँस के बोले वो आदमी ही नहीं
5- बस जान गया मैं तिरी पहचान यही है,
तू दिल में तो आता है समझ में नहीं आता.
6- मोहब्बत का तुम से असर क्या कहूँ,
नज़र मिल गई दिल धड़कने लगा.
7- रक़ीबों ने रपट लिखवाई है जा जा के थाने में,
कि 'अकबर' नाम लेता है ख़ुदा का इस ज़माने में.
8- लोग कहते हैं कि बद-नामी से बचना चाहिए,
कह दो बे इस के जवानी का मज़ा मिलता नहीं।
9- वस्ल हो या फ़िराक़ हो 'अकबर'
जागना रात भर मुसीबत है
10- मेरे हवास इश्क़ में क्या कम हैं मुंतशिर
मजनूँ का नाम हो गया क़िस्मत की बात है