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200 साल पुरानी सेना और 21 दिन में दो टुकड़े !
बीसवीं सदी का साल 1947 सबसे चुनौती भरा रहा क्योंकि इसी साल भारत देश का बंटवारा होने वाला था. लेकिन यहाँ की ज़मीन का बंटवारा होने से पहले राष्ट्रीय सुरक्षा के बेहद ज़रूरी साधन ब्रिटिश इंडियन आर्मी, नेवी और एयर फ़ोर्स का बंटवारा होने वाला था. जिसके सहारे भारत की व्यवस्था चल रही थी. उस दौर में 4 लाख फौजियों को दो साल से भी कम समय में सेवामुक्त कर दिया गया, जब वो अंग्रेज़ी हुकूमत की छत्रछाया में विदेशों में दूसरे विश्व युद्ध के मोर्चे से वापस लौटे ही थे.

इसके बाद यह तय हुआ कि 15 अगस्त 1947 तक भारत और पाकिस्तान की सरकार के नियंत्रण में आई अपनी-अपनी सेनाओं को वो तैयार कर लेंगे. बंटवारे के लिए बनाई गई 'पार्टीशन काउंसिल ने दिशानिर्देश जारी तो कर दिए लेकिन इसे अमल में लाने के लिए केवल 45 दिन का ही समय था. इसकी जिम्मेदारी फील्ड मार्शल क्लौड ऑचिनलेक की अध्यक्षता वाली 'आर्म्ड फोर्सेज़ रिकांस्टीट्यूशन कमेटी' को सौंपी गई. क्लौड ऑचिनलेक उस समय भारतीय सेना के कमांडर इन चीफ़ थे. इस कमेटी में सदस्य के रूप में आने वाले समय के दो सेना प्रमुख जनरल करिअप्पा और जनरल थिमैया भी थे.
सुरक्षा की नीतिगत भूलों और भ्रांतियों पर लिखते हुए खुशवंत सिंह अपनी किताब 'ख़तरे में भारत' में ही बताते हैं की सेना के बंटवारे की वास्तविक प्रक्रिया जुलाई के तीसरे सप्ताह में शुरू हुई, जब भारत सरकार के सभी अन्य विभाग पहले ही बांटे जा चुके थे. हालांकि की यह तय किया गया था कि सशस्त्र सेनाओं के पुनर्गठन क्षेत्रीय आधार पर किया जाएगा न की साम्प्रदायिक आधार पर लेकिन ऐसा हुआ नहीं. सेना के साजो-सामान और चल-भण्डार को बंटवारे में आने वाले सुरक्षा बलों के अनुपात के आधार पर बांटा जाएगा जबकि तकनीकी प्रशिक्षण संस्थानों को जो जहां जैसा है यानी भौगोलिक स्थिति के आधार पर बांट दिया जाएगा. 15 अगस्त 1947 तक दोनों देशों की दो अलग-अलग सशस्त्र सेनाओं का पुनर्गठन हो जाना था. 7 अगस्त, 1947 को ब्रिटिश सैन्य इकाइयां भारत से रवाना होने लगी थी. आख़िरी फौजी इकाई फरवरी 1948 में वापस गयी.
अविभाजित भारत की सशस्त्र सेनाएं दुनिया की बेहतरीन फौजों में से थीं. जिसका दो हिस्सों में बंटवारा बहुत बड़ा नुकसान था. 1748 में स्ट्रिंगर लॉरेंस द्वारा प्रथम 'मद्रास फ़्यूज़िलियर्स' की स्थापना के 200 साल बीत चुके थे. एक महान सेना जिसे उत्कृष्ट युद्धक बल का रूप लेने में दो सौ साल लगे थे. उसके मात्र 21 दिनों में टुकड़े कर दिए गए थे.